दीपज्योति गुप्ता, ग्वालियर |
तूफानों में झंझावातों में
अमावस की अँधेरी रातों में
वो डिगा नहीं वो डरा नहीं
मर मर के भी वो मरा नहीं
वो लड़ा अपने हालातों से
वो झुका ना किसी की बातों से
था अपने पर विश्वाश उसे
था शक्ति का अहसास उसे
वो फूल था उसको खिलना था
फिर , इक दिन माटी में मिलना था
ये सोच के वो ना घबराया
डाली पर झूम के लहराया
आंधी पानी से लड़ता रहा
फिर भी आगे को बढ़ता रहा
उसने पा लिया था जीवन को
फिर हरने लगी छटा मन को
तितली चिड़ियों की आहट से
सर उठा दिया उसने झट से
उनके संग जी भर कर खेला
सुखमय हो उठी भोर बेला