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जगदगुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज |
हाँ वो काहे को भोगेंगे। वो तो केवल लोक शिक्षा के लिये कार्य करते हैं। जितने कार्य भगवान् के हैं, सबसे पहले भगवान् ही को लो। नित्य सिद्ध के बाप तो वही हैं। तो वो भी सब प्रकार का कार्य करते हैं। दिखाने के लिये। देखो मैं बीमार होने जा रहा हूँ, प्रारब्ध भोगने जा रहा हूँ। वो तो लीला क्षेत्र में आदर्श स्थापन के लिये करते हैं। भगवान् जब मृत्युलोक से गोलोक गये श्री कृष्ण तो-
*योगधारणयाऽऽग्नेय्यादग्ध्वा धामाविशत् स्वकम्।*
( भाग. ११-३१-६)
भागवत में कहा गया है कि योग धारण किया और महापुंज को बुलाया और फिर 'अदग्ध्वा' जलाया नहीं शरीर को और 'धामाविशत् स्वकम्' और आपने धाम चले गये।
सोलह हजार एक सौ आठ ब्याह किया एक एक स्त्री के दस-दस बच्चे हुये हैं और इतना वैराग्य भी दिखा दिया कि सबको आपस में लड़ाकर मरवा दिया। ये केवल संसार को बताने के लिये देखो मेरी इतनी बड़ी फैमिली है और मैं सदा मुस्कराता रहता हूँ तुम लोगों के एक दो चार बच्चे माँ बाप होंगे फैमिली में, चार छ: आदमी और उसी में चौबीस घंटे टेन्शन है। हमारी इतनी बड़ी फैमिली है और देखो मुझे कोई फीलिंग नहीं होती।
ऐसे ही तुम लोग भी अभ्यास करो। योगियों को दिया उपदेश कि देखो तुम लोग योग की अग्नि प्रकट करते हो, कोई-कोई योगी तो शरीर जला देते हो और फिर जाते हो ब्रह्म में मिलने। और मैंने योग अग्नि प्रकट किया लेकिन जलाया नहीं। उनको भी इशारा कर दिया।
तो इस प्रकार संसार को शिक्षा देने के लिये नित्य सिद्ध महापुरुष भी अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। गौरांग महाप्रभु ने विवाह किया फिर स्त्री को त्याग कर के संन्यासी हो गये। और नित्यानंद से कहा कि तुम दो ब्याह कर लो। बड़ी-बड़ी खोपड़ी वाले भी रहे होंगे उस समय भी, उन्होंने यही कहा होगा ये कुछ ढीला है इस बाबा का दिमाग। अपने आप तो बीबी को छोड़ देता है और अपने शिष्य नित्यानन्द से कहता है कि दो ब्याह कर लो। और एक इनका दास अस्सी वर्ष की बुढ़िया से चावल माँगने गया खाने के लिये भीख और वो भी अपने गुरु के लिये, गौरांग महाप्रभु के लिये। और उसको निकाल दिया कि तुम क्यों गये स्त्री से भिक्षा माँगने? तुम संन्यासी हो सिर मुड़ाया है। दण्ड कमण्डल लिये हो, तुमको आज्ञा दी थी मैंने कि किसी स्त्री से भीख नहीं माँगना ? और वो इतनी भक्त गौरांग महाप्रभु की थी कि वो अस्सी वर्ष की बुढ़िया कि पूरे तौर पर वो भगवान् मानती थी, संत नहीं मानती थी गौरांग महाप्रभु को, उससे भीख माँगा और निकाल दिया। उस समय भी हम लोग रहे होंगे और क्या कहा होगा ? कुछ ढीला है और लोग कहते हैं कि ये भगवान् का अवतार हैं। कोई नहीं समझ सकता। नित्यसिद्ध के कार्य हों, चाहे इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति कर लिया हो।
जार चित्ते कृष्ण प्रेमा करये उदय।
तार वाक्य क्रिया मुद्रा विज्ञेय न बुझय।।
जिसने भगवत्प्राप्ति कर लिया उसके वाक्य उसकी क्रिया, उसकी मुद्रा बड़े-बड़े ज्ञानी, वो भी नहीं जान सकते । साधारण बुद्धि वाला क्या जानेगा।
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