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प्रियंगू या पांडव बत्ती- जिसकी पत्तियां मशाल की तरह जलाई जाती थीं - निखिलेश मिश्रा

Saturday, January 2, 2021

/ by Dr Pradeep Dwivedi


निखिलेश मिश्रा
लखनऊ


प्रियंगू या पांडव बत्ती (लार्ज-लीफ ब्यूटी बेरी) एक सदाबहार झाड़ीनुमा शाखा वाला औषधीय पौधा होता है।  एशिया में यह तिब्बत, बांग्लादेश, मलाया, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड तथा भारत के उत्तर से पूर्व तक के हिमालयी क्षेत्रों, बंगाल, सिक्किम व उत्तर पूर्व के राज्य तथा दक्षिण में पश्चिम घाट के नमी वाले सदाबहार तथा अर्ध-सदाबहारी जंगलों में लगभग 1400 मीटर तक की ऊंचाई में पाया जाता है।  

यह एक ऐसा पौधा होता है जिसकी पत्ती पर थोड़ा सा तेल लगाने पर वह पत्ती किसी दिये की बाती के समान जलकर रौशनी देने लगती है। जनश्रुतियों में ऐसा कहा जाता है कि जब पांडव वनवास गए थे तो उन्होनें इस पेड़ के पतों पर तेल लगाकर और उन्हें जलाकर रोशनी की थी।  जिस कारण ही इस पौधे का नाम "पांडव'रा बत्ती" अर्थात पांडवों की मशाल या टॉर्च पड़ा।

विश्व तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे विभिन्न नामों से यह जाना जाता है, अंग्रेजी में इसे लार्ज-लीफ ब्यूटी बेरी (हिमालयी प्रजाति) तथा वेलवेट ब्यूटी बेरी, तिब्बती में गंध प्रियंकू, नेपाली में दहीचाउँले, दहीकाम्लो, दहीजालो, दहीचामल कहते हैं।  हिंदी में प्रियंगु, बस्तरा, भीमोली, दहिया, दइया आदि, असमिया में Bonmala या Tong-loti, बंगाली में Massandar, गुजराती में लताप्रियंगु, कन्नड़ में रशिपत्री, कोंकणी में ऐंसर, मलयालम में चिम्पोम्पिल, मराठी में कानफुली, ऐंसर, तमिल में कट्टु-क-कुमिल आदि कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

पहाड़ी क्षेत्र में प्रियंगू की केवल एक मुख्य किस्म केलिस्कार्ण मैक्रोफिला (Callicarpa macrophylla) उगती है। अन्य क्षेत्रों में केलिस्कार्ण मैक्रोफिला के साथ उगने वाली अन्य मुख्य वानस्पतिक किस्में केलिस्कार्ण टोमेंटोसा (Callicarpa tomentosa), केलिस्कार्ण लोबाटा(Callicarpa lobata), केलिस्कार्ण विलोसा (Callicarpa villosa), केलिस्कार्ण वल्लीचीआँ (Callicarpa wallichiana) आदि भी होती हैं।

इसके वृक्ष की ऊंचाई प्रजातियों के अनुसार 1-5 मीटर तक हो सकती है।  हिमालय क्षेत्र में उगने वाली इसकी प्रजाति लगभग 2 मीटर तक ऊँची होती है।  इसकी युवा शाखाऐं, पत्तियों की निचली सतह, पत्तियों के डंठल और फूल-क्लस्टर-डंठल मखमली ऊनी होते हैं, जिस कारण अंग्रेजी में इसे वेलवेट बेरी भी कहा जाता है। इसकी पत्तियाँ एक दुसरे से विपरीत, लांस ओवेट शेप्ड से लांस ओबलोंग शेप्ड, टैपरिंग (लम्बी से छोटी होती हुई), किनारों से राउंडेड टूथेड, ऊपर से बाल रहित, पीली या मुरझाई हुयी तथा नीचे से गहरी हरी और मखमली ऊनी होती हैं।  हिमालय क्षेत्र में उगने वाली इसकी प्रजाति की पत्तियों का आकार 10-25 सेमी लंबा, 5-7.5 सेमी चौड़ा तथा पत्ती-डंठल की लम्बाई 1.0-1.5 सेमी तक होती है।

पुष्प एवं फल:

प्रियंगू (पांडव बत्ती) के फूल घने शंक्वाकार गुच्छे के रूप में, पंखुड़ियां और शाखाओं के द्विभाजित रूप वाले 5 सेमी तक लंबे होते हैं, जिनमें 12.5 सेमी लंबा फूल-क्लस्टर-डंठल शामिल हैं। इसके फूल लगभग 4 मिमी के पार, गुलाबी या लाल रंग के होते हैं। कैलिक्स लगभग 1.7 मिमी लंबा, घंटी के आकार का, मामूली 4-दांतेदार, घने मखमली-बालों वाला होता है। प्रत्येक फूल केलिक्स के समान लगभग 2.5 मिमी लंबे, ट्यूब के रूप में, कुछ हद तक 2-लिपटे हुए, 4-लघु लोब के साथ होता है।  इसका पुंकेसर संख्या में 4, लगभग 0.8 मिमी लंबा, ओवेट-ओबलोंग प्रमुख रूप से फैला हुआ होता है।  इसका फल रंग में सफेद, 2-3 मिमी व्यास का, एक कठिन एंडोकार्प के साथ गोलाकार, होता है जो आमतौर पर चार, 1-बीज वाले पाइरेन्स में टूट जाता है।

प्राचीन काल से ही प्रियंगू या पांडव बत्ती (Large-Leaf Beauty Berry) एक औषधीय वनस्पति मानी जाती है तथा शास्त्रों में महर्षि चरक ने इसको "मूत्र विरंजनीय" अर्थात मूत्र को शुद्ध तथा उसके रंग को रंगहीन करने वाला तथा "पुरीष संग्रहणीय" अर्थात मल के प्रवाह को सुगम कर बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियों के समूह का बताया है।  आयुर्वेद के विभिन्न आचार्यों द्वारा भी अपने ग्रंथों में इसे जड़ी बूटियों के रूप में विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।

प्रियंगू का औषधीय उपयोग:      

-इसके फल स्वाद में कुछ-कुछ जामुन जैसे पर अत्यधिक कसैले होते हैं, लेकिन इनका प्रयोग शराब और जेली बनाने में होता है।

-सिरदर्द के इलाज के लिए इसकी छाल का पेस्ट माथे पर लगाया जाता है।

-प्रियंगू की छाल के पाउडर का उपयोग मसूड़ों की सूजन और जलन में मसूड़ों पर रगड़ने तथा चेहरे की रंगत को बेहतर बनाने के लिए फेस पैक में इस्तेमाल किये जाने के लिए भी किया जाता है।

-प्रियंगू की छाल के पाउडर का उपयोग घावों से रक्तस्राव को नियंत्रित करने के लिए डस्टिंग पाउडर के रूप में किया जाता है।

-प्रियंगू (कैलिकार्पा मैक्रोफिला) की छाल का काढ़ा पेप्टिक अल्सर, आंतरिक बवासीर के मामलों में आंतरिक रक्तस्राव को रोकने के लिए 30-40 मिलीलीटर की खुराक के रूप में दिया जाता है।

-प्रियंगू (कैलिकार्पा मैक्रोफिला) की छाल या जड़ का ठंडा अर्क बुखार और शरीर की जलन के इलाज के लिए 50 मिलीलीटर की खुराक के रूप में रोगियों को दिया जाता है।

-प्रियंगू (कैलिकार्पा मैक्रोफिला) की छाल या जड़ का ठंडा अर्क 40 मिलीलीटर की खुराक में रक्त शोधक के रूप में कार्य करता है।

-प्रियंगू का सूखा पाउडर दूध के शक्तिवर्धक चूर्ण के रूप में शरीर की शारीरिक क्षमता में वृद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है।

-प्रियंगू की छाल का पेस्ट, त्वचा रोगों के इलाज के लिए वाह्य रूप से लगाया जाता है।

-प्रियंगू के पत्ते या छाल से संसाधित तेल शरीर के जोड़ों में सूजन और दर्द होने पर उपचार के लिए लगाया जाता है।


नोट- किसी योग्य सलाकार से सलाह उपरांत ही उपयोग में लें।

(साभार कुमाउनी कल्चर आदि)



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