लखनऊ
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी एक साल से ज्यादा का समय बाकी है। मगर बिहार की तरह यहां भी 'डीएनए पॉलिटिक्स' की एंट्री हो चुकी है। शनिवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला करते हुए एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि वह (योगी आदित्यनाथ) मंच या सदन से जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं, वह एक मुख्यमंत्री को शोभा नहीं देती।अखिलेश ने कहा, 'वह कहते हैं कि इनके (विपक्ष) डीएनए में विभाजन है। अगर वह डीएनए का फुल फॉर्म बता दें तो हम जान जाएंगे कि वह सीएम हैं। उन्हें कम से कम यह स्पष्ट करना चाहिए कि डीएनए आखिर है क्या?' अखिलेश यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के रहने वाले नहीं हैं, वह दूसरे प्रदेश से आए हैं लेकिन फिर भी यहां की जनता ने उन्हें स्वीकार किया है और उन्हें प्रदेश की जनता को धन्यवाद देना चाहिए।
योगी आदित्यनाथ ने क्या कहा था?
दरअसल शुक्रवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ‘अन्नदाता किसान को धोखा देकर 'दलाली' करने वाले लोग आज जरूर इस बात को लेकर चिंतित हैं कि पैसा सीधे उनके (किसानों) खातों में क्यों जा रहा है। आज तो पर्ची भी किसानों के स्मार्टफोन पर मिल रही है। घोषित 'दलाली' का जो जरिया था वह भी खत्म हो गया है।' मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को सदन से वॉकआउट कर रहे सदस्यों की ओर इशारा करते हुए कहा...ये है वास्तविकता, ये है सच्चाई, ये सच्चाई इस बात को बताती है कि विपक्ष का हमारे अन्नदाता किसानों से कोई लेना-देना नहीं है।'
क्या है डीएनए पॉलिटिक्स?
राजनीति में पहली बार डीएनए शब्द पर बहस 2015 के विधानसभा चुनाव में शुरू हुई थी। उस वक्त एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए नीतीश कुमार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैलियों में जमकर हमला बोला था। मुजफ्फरपुर में 'परिवर्तन रैली' को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार के राजनैतिक डीएनए में कुछ गड़बड़ है। इस गड़बड़ के चलते ही उन्होंने उन दोस्तों को दगा दे दिया जिन्होंने उनके लिए काम किया था। दरअसल 2014 के आम चुनाव से पहले साल 2013 में जेडीयू ने नरेंद्र मोदी के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी से 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया था। जेडीयू नहीं चाहता था कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे।