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यादों की घड़ी - आर्यावर्ती सरोज "आर्या"

Wednesday, February 10, 2021

/ by Dr Pradeep Dwivedi

आर्यावर्ती सरोज "आर्या"

लखनऊ ( उत्तर प्रदेश)


टंग गईं यादें तेरी

हिय के नाग दंत ( खूंटी)पर

एक घड़ी की मानिंद

घरी घरी,टिक टिक कर

याद दिलाती है.....

वो हर लम्हा........

जो साथ गुजारे थे कभी हमने,

समेट लेती है,हर वो पल

जिसमें टिमटिमाते तारों

की बेकलता और उषा

की स्पंदित रश्मियों के

अबोल अहसास छुपे होते हैं,

अगणित अमिट छाप

उभरने लगते हैं,

समय की सूई के साथ

और अपनी कंपन से

उद्वेलित कर जाते....

इंद्रधनुषी जज्बात,

हर बार ठहर सी जाती है,

दृष्टि, निर्निमेष  टकटकी बांधे

अपलक निहारती रहती हैं आंखें

सकपकाये दिल के कोने से

जब मौन ध्वनियां,

कोलाहल मचातीं

तब, झंकृत हो उठते

असंख्य वीणा के तार

और मिलन होता है

हर बार,मेरा तुम्हारा

स्थायित्व तुम्हारा,

मेरे उर में,चित्त में

हृदय में..........

तुम मेरे चेतन अवचेतन में

रेशे रेशे में समाहित हो

मेरे श्याम....!!

और..., क्या मांगू तुझसे!

जब... तुम ही मेरे हो!!

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