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स्‍त्री शक्‍ति: महिला उद्यमिता की शक्‍ति की पहचान - शिवानी मिश्रा

Monday, February 8, 2021

/ by Dr Pradeep Dwivedi




शिवानी  मिश्रा 

शोध अध्येता---वाणिज्य संकाय परिसर,

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, 

गोरखपुर उत्तर प्रदेश, 273001

गोरखपुर उत्तर प्रदेश, 273001 पर आजीविका अर्जित करने में हिस्सेदार रही है। लेकिन मोटे तौर पर उनका काम छोटे स्तर पर ही सीमित रहा या उसकी अनदेखी होती रही। पापड़ और अचार जैसी घरेलू वस्तुओं को बनाने से लेकर तो सिलाई, कपड़े बुनने और एम्ब्रायडरी तक, डायरेक्ट सेलिंग (एम्वे और टपरवेयर जैसी कंपनियों के लिए) तक, घर पर ट्यूशन देने तक और यहां तक कि छोटे कार्यक्रमों में कैटरिंग तक रहा है। उद्योग में महिलाएं हमेशा कोई न कोई राह पकड़ लेती हैं। हाल ही के समय में, टेक्नोलॉजी, शिक्षा और फंडिंग व मार्केटिंग के बढ़े हुए चैनल्स की वजह से यह महिलाएं उद्यमी बनना चाहती हैं और अपना खुद का कारोबार शुरू करना चाहती हैं।

इन प्रयासों में कई स्तरों पर और कई तरह की समस्याएं हैं। इसमें एक बड़ा कारण है महत्व न देना। फंडिंग संसाधनों की कम जानकारी और उनके कारोबार को मदद देने वाली योजनाओं के बारे में जानकारी न होना भी एक कारण है। सहयोगी परिवार न होना तो जैसे सबसे बड़ी बाधा है। सबसे महत्वपूर्ण, हमारा सामाजिक नजरिया भी एक कारण है जो महिला के स्टार्टअप के मुकाबले पुरुष के स्टार्टअप को चुनने को कहता है। जागरुकता, प्रोत्साहन देने वाला नजरिया और मूल्य व्यवस्था में जमीनी बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। महिला उद्यमियों के खिलाफ होने वाले भेदभाव को बदलना बेहद जरूरी है।

आधुनिक व्यापार की जरूरत है, रुझानों को देखने के अवसरों की पहचान करना; अवसरों की पहचान करने का पहला दृष्टिकोण प्रवृत्तियों का पालन करना और अध्ययन करना है कि वे उद्यमियों के लिए आगे बढ़ने के अवसर कैसे बनाते हैं। अनुसरण करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण रुझान आर्थिक रुझान, सामाजिक रुझान, तकनीकी प्रगति, और राजनीतिक कार्रवाई और नियामक परिवर्तन हैं। एक उद्यमी या संभावित उद्यमी के रूप में, इन क्षेत्रों में बदलावों के बारे में जागरूक रहना महत्वपूर्ण है।

इकसवीं शताब्‍दी में, महिलाओं ने न सिर्फ धन अर्जन करने में अपनी भूमिका दर्ज कराई है बल्‍कि भावी संगठनों का निर्माण करते हुए अभिकर्ताओं का स्‍वरूप भी परिवर्तित किया है। हाल के वर्षों में, महिलाओं ने जीवन के हर क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है।

विगत तीन दशकों में, महिलाओं ने कॉरपोरेट जगत में महत्‍वपूर्ण सफलता हासिल की है, सामाजिक नैतिकता की बाध्‍यताओं को पार करते हुए घर तथा कार्यस्‍थल पर स्‍वयं को सफल उद्यमी एवं कार्यकारी व्‍यावसायिकों के रूप में साबित किया है। भारतीय महिला उद्यमी वर्ग ने नए उद्यमों को आरंभ करने एवं उनका सफलतापूर्वक संचालन करने में बेहतर कार्य-निष्‍पादन के कई उदाहरण प्रस्‍तुत किए हैं।

मैं इस बात में पूरी आस्‍था रखता हूं कि किसी भी कार्यदल के नेता के पास लक्ष्‍य के प्रति स्‍पष्‍ट दृष्‍टिकोण एवं रणनीति बनाने की क्षमता होनी चाहिए तथा लक्ष्‍य को हासिल करने हेतु कार्यदल को अति सावधानी एवं सतर्कतापूर्वक अपने प्रयासों को मूर्तरूप देने में प्रभावी नेतृत्‍व करना चाहिए। नेता को पक्षपात रहित एवं धैर्यवान होना चाहिए तथा उसकी क्षमताओं को समझते हुए एवं तदनुसार उत्‍तरदायित्‍वों का प्रत्‍यायोजन करते हुए जन प्रबंधन कौशल होना चाहिए। उसे अपने दृढ़ लक्ष्‍यों के प्रति अडिग रहना चाहिए। उसे अपने कर्मचारियों का मनोबल काफी बढ़ाकर रखना चाहिए और संगठन को संकट के भंवर से बाहर निकालना चाहिए।

मैंने हाल ही में फिक्‍की के अध्‍यक्ष का पदभार ग्रहण किया है और यह पहली बार है कि पर्यटन एवं आतिथ्‍य सत्‍कार सेक्‍टर का प्रतिनिधित्‍व किया जा रहा है। अध्‍यक्ष की अपनी मौजूदा हैसियत में, मैं पर्यटन को बढ़-चढ़कर बढ़ावा दे रहीं हूं। फिक्‍की में, हम लोग भारतीय उद्योग के संवर्धन हेतु अनेक समारोहों एवं पहलों के आयोजन में व्‍यस्‍त हैं। इनमें एक विषय है, जिसके प्रति मेरा काफी आत्‍मीय जुड़ाव है, -महिला उद्यमिता।

अप्रैल 2013 में, फिक्‍की महिला संगठन (एफ एल ओ) ने ''सभी विषमताओं के विरूद्ध उद्यमिता'' उपाधि प्राप्‍त 150 महिला उद्यमियों की कहानियों का एक संकलन प्रकाशित किया। ये कहानियां हमें यह बताती हैं कि कैसे इन महिलाओं ने संघर्ष करते हुए, बाधाओं से लड़ते हुए उद्यमिता के जगत, पुरूषों के अधिपत्‍य वाले उद्यमिता जगत, में अपनी महत्‍वपूर्ण उपस्‍थिति एवं स्‍थान दर्ज कराने में सफल हुई हैं। प्रत्‍येक कहानी महिलाओं के अटूट साहस, दृढ़ प्रतिज्ञा तथास्‍त्री शक्‍ति के उद्भूत सामर्थ्‍य को सही अर्थों में प्रतिबिम्‍बित करती है।

जब कभी भी मैं इन कहानियों को पढ़ती हूं, मैं काफी प्रेरित एवं अनुप्राणित महसूस करती हूं। ये कहानियां मुझे मेरी महिला उद्यमिता के रूप में प्रयासों का स्‍मरण कराती हैं। 10 अक्‍टूबर, 2006 को, मेरे जीवन में बड़ा भूचाल आ गया जब मेरे पति का स्‍वर्गवास हो गया। मेरे पति के गुजर जाने के 10 दिनों के भीतर मुझे इस कंपनी के अध्‍यक्ष व प्रबंध निदेशक का कार्यभार संभालना पड़ा। मेरे परिवार के लोग तथा मेरे इस कंपनी के कर्मचारीगण मेरी ओर टकटकी लगाए हुए थे और मुझे उनके लिए एक बड़े उत्‍तरदायित्‍व को निभाना था। मैं कार्य में इस कदर व्‍यस्‍त हो गई कि मेरे पास विलाप का भी समय नहीं था। मेरे लिए, प्रत्‍येक कदम पर सब कुछ नया था और सीखने वाला था। हालांकि आतिथ्‍य सत्‍कार की अवधारणाएं हमारे मन-मानस में स्‍वत: अंतर्निहित होती हैं, लेकिन इस संबंध में अपेक्षित पेशेवर प्रशिक्षण नहीं था। मैंने काम करते-करते इसे सीखा और अभी भी सीख रही हूं।

मैंने भारत के किसी दूसरे उद्यमी की तरह चुनौतियों का सामना किया और अभी भी सामना कर रही हूं। अब इनका सामना करना तो मेरे लिए अनिवार्य बन गया है। मैंने कभी हार नहीं मानी है। मेरे र्धर्य एवं संयम ने आज मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है जहां से मैं अब समाज को अपनी सेवाएं दे सकती हूं।

अध्‍यक्ष एवं प्रबंध निदेशक का कार्यभार संभालने के बाद मेरे महत्‍वपूर्ण निर्णयों में''ललित'' ब्रांड नाम से समूह की नई पहचान बनानी थी। ब्रांड का नाम परिवर्तन एक बड़ी कवायद है, हमने इसका नाम बदलने से पहले एक साल तक इस संबंध में कड़ी मेहनत की। चूंकि मेरे पति ने इस व्‍यवसाय की स्‍थापना की थी, इस ब्रांड का नया नाम 'ललित'' सहज ही सूझ गया। इस कंपनी की क्षमता–दर-क्षमता बढ़ती गई और मेरे कार्यभार संभालने के समय जहां हमारे पास सिर्फ सात ही होटल प्रचालन में थे, आज हमारा नाम भारत के निजी स्‍वामित्‍व वाले सबसे बड़े होटल श्रृंखलाओं में शुमार है।

मैं सिर्फ होटलों में ही नहीं बल्‍कि उपलब्‍धियों के निर्माण में भी विश्‍वास रखती हूं। हम अपनी पहलों में स्‍थानीय लोगों विशेषकर महिलाओं, उनकी हस्‍तशिल्‍प कलाओं, संस्‍कृति एवं भोजन को शामिल करते हैं और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से उन्‍हें प्रशिक्षण एवं रोजगार देते हैं। कोई भी राष्‍ट्र तभी विकास कर सकता है जब देश के सभी लोग शिक्षित हों और आर्थिक रूप से स्‍वनिर्भर हों।

उद्यमिता की जिम्‍मेवारियों को अपने कंधे पर लेने वाली महिलाओं की संख्‍या पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ी है। वैसे इनकी संख्‍या में धीरे-धीरे वृद्धि होने के बावजूद भारत में महिला उद्यमिता को अभी काफी लंबा रास्‍ता तय करना है। आवश्‍यकता इस बात की है कि अधिक से अधिक महिलाओं को नया उद्यम आरंभ करने एवं संचालन कर सकने संबंधी उनकी क्षमताओं के प्रति उन्‍हें पूरी तरह आश्‍वस्‍त करने की है।

इस कार्य में महिलाओं का हौंसला टूट जाना और इसे बीच में छोड़ देने का कारण कतई यह नहीं है कि एक उद्यमी बनना काफी कठिन है और बल्‍कि उन्‍हें अपनी उद्यमिता की राह में अनेक उतार- चढ़ाव देखने को मिलते हैं।

भारत में सफल महिला उद्यमियों के अनेकोनेक उदाहरण मिलते हैं। जैसे– राधा भाटिया (अध्‍यक्ष, बर्ड ग्रुप), मल्‍लिका श्रीनिवासन (अध्‍यक्ष तथा सीईओ, ट्रैक्‍टर्स एण्‍ड फार्म इक्‍विपमेंट), प्रिया पॉल (अध्‍यक्ष, एपीजय पार्क होटल्‍स), शाहनाज हुसैन (सीईओ, शाहनाज हर्बल्‍स इन्‍क), एकता कपूर (संयुक्‍त प्रबंध निदेशक, बालाजी टेलीफिल्‍म्स) और बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों में उच्‍चतम मुकाम हासिल करने वाली महिलाएं जैसे इंद्रा कृष्‍णामूर्ति नूई (अध्‍यक्ष तथा मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी पेप्‍सिको), नैनालाल किदवई (समूह महाप्रबंधक तथा देश प्रमुख, एच एस बी सी इंडिया), चंद्राकोचर (सीईओ तथा प्रबंधक निदेशक आई सी आई सी बैंक)।

भले ही महिलाएं व्‍यवसाय के संचालन में समान रूप से सक्षम हैं, लेकिन महिला उद्यमी बनने की उनकी राह में अनेक सामाजिक और सांस्‍कृतिक अड़चनें हैं। इनमें सबसे प्रमुख न सिर्फ भारत में बल्‍कि पूरे विश्‍व में पुरूष अधिपत्‍य वाले कॉरपोरेट परिदृश्‍य का परंपरागत विचारधारा का होना है।

मुझसे अक्‍सर यह पूछा जाता है कि इतने वर्षों के मेरे कार्यकाल में क्‍या मुझे कभी लिंग- विशिष्‍ट चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। मेरा जवाब हमेशा‘ना’ में रहा है। मेरा यह मानना रहा है कि यदि किसी व्‍यक्‍ति में नेतृत्‍व की क्षमताएं हैं तो उसकी सफलता में लिंग संबंधी अड़चनें आती ही नहीं है और अगर आती भी हैं तो‘ना’ के बराबर। प्रत्‍येक दिन के अंत में, किसी भी नेता की भूमिका एक ही होती है- किसी लक्ष्‍य को तय करना एवं उसका स्‍वरूप निर्धारित करना और उसके बाद पूरी टीम को इसकी प्राप्‍ति हेतु प्रेरित करना एवं मार्ग–निर्देशन करना। इन विशिष्‍टताओं से पूर्ण व्‍यक्‍तित्‍व वाला कोई भी इंसान संगठन का सफल नेतृत्‍व कर सकता है।

मैं अपने संगठन में भी इसी सिद्धांत का पालन करती हूं और पुरूषों एवं महिलाओं को समान अवसर प्रदान करती हूं। आज मेरे बेटे एवं मेरी बेटियां मेरे साथ इस कंपनी में कार्य करते हुए महत्‍वपूर्ण पदों का कार्यभार संभाल रहे हैं। मेरा यह सपना है कि अधिक से अधिक महिलाएं आगे बढ़ें एवं संगठनों में महत्‍वपूर्ण पदों पर आसीन हों।


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