सुजल कुमार बांदा |
आगामी चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में राजीनीतिक हलचल तेज हो चुकी है। राज्य चुनाव आयोग ने एक प्रेस वार्ता के जरिये राज्य में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव के सन्दर्भ में विज्ञप्ति जारी कर दी है। हालाकि आयोग ने तिथियों को लेकर कोई भी जानकारी साझा नही किया है पर चुनाव की आहाट सुनते ही राजनितिक गलियारों में गतिविधि तेज हो चली है। सभी राजनितिक दल बूथ के स्तर पर अपने प्रतिनिधियों को नियुक्त करना शुरू कर चुके हैं और पंचायत तथा टोलों स्तर के बैठकों का सिलसिला बदस्तूर जारी है |
राजनितिक विश्लेशको की माने तो यह पंचायत चुनाव आगामी विधानसभा चुनावों के रुझान को तय करेंगे। इसलिए यह पंचायती चुनाव जनता के मूड का लिटमस टेस्ट है।
इस बार सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस के अलावा शिवसेना और भागीदारी संकल्प मोर्चा (जिसमें लगभग 8 से 9 पार्टियां शामिल है) भी उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव के मैदान में अपनी किस्मत आजमा रही हैं। देखा जाए तो शिव सेना एवं संकल्प मोर्चा आगामी पंचायत चुनाव में राज्य के बड़ी चार पार्टियों का खेल बिगाड़ सकती हैं क्योंकि गत वर्ष हुए बिहार विधानसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए देखा जाए तो बिहार में भी छोटी पार्टियां विधानसभा में सभी बड़ी पार्टियों के लिए वोट कटवा साबित हुई थीं।
हालांकि अगर उप्र में पंचायत चुनाव के लिहाज़ से देखें तो, कृषि कानून को जनता स्वीकार या खारिज भी कर सकती है। इससे पहले जहाँ पंजाब निकाय चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया, वहीं गुजरात मे हुए निकाय चुनाव में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की। हालांकि इन सब के अलावा पंचायत चुनाव में स्थानीय मुद्दे भी समीकरण निर्धारित करने में उपयोगी साबित हो सकते हैं |