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लेखिका- डॉ मंजू डागर चौधरी (अंतराष्ट्रीय पत्रकार) डबलिन, आयरलैंड |
गुमनाम थे हम
नाम से पहले ,
जिन्दगी की कशमकश में ,
उलझी रही - सुलझी रही
लहरों से खिलवाड़ तेरा
बोलता है ये समंदर
मैं हूँ तुझमें
और तु मुझमें
रही गगन को ताक तु
और क्या चाहे इस जीवन में।
तु धरा सी ,
मैं सहर ,
तु रेत सी घुलती हुई ,
अब जो तूने दे दिया है
हां रखुंगी लाज इसकी
पारो कहा , उम्मीद बंधी ,
पारो कहा ------
चंदरमुखी तो आयेगी
आज नहीं तो कल सही
इश्क तो रौशन होगा कही।
गुमनाम थे हम ------
नाम से पहले।