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गुमनाम थे हम - डॉ मंजू डागर चौधरी

Sunday, March 21, 2021

/ by Dr Pradeep Dwivedi

  
लेखिका- डॉ मंजू डागर चौधरी
(अंतराष्ट्रीय पत्रकार)
 डबलिन, आयरलैंड

गुमनाम थे हम

नाम से पहले ,

जिन्दगी की कशमकश में ,

उलझी रही - सुलझी रही 

लहरों से खिलवाड़ तेरा 

बोलता है ये समंदर 

मैं हूँ तुझमें 

और तु मुझमें 

रही गगन को ताक तु 

और क्या चाहे इस जीवन में। 


तु धरा सी ,

मैं सहर ,

तु रेत सी घुलती हुई , 

अब जो तूने दे दिया है 

हां रखुंगी लाज इसकी 

पारो कहा , उम्मीद बंधी ,

पारो कहा ------

चंदरमुखी तो आयेगी 

आज नहीं तो कल सही 

इश्क तो रौशन होगा कही। 


गुमनाम थे हम ------

नाम से पहले।

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