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रोहित सरदाना के नाम - शैलेंद्र श्रीवास्तव

Friday, April 30, 2021

/ by Dr Pradeep Dwivedi
रचनाकार - शैलेंद्र श्रीवास्तव
प्रसिद्ध अभिनेता व लेखक


रोहित सरदाना

खल गया, तुम्हारा ऐसे जाना...

जाने की भी एक उम्र होती है

इकतालीस भी कोई उम्र होती है?

तुमसे पहचान नहीं थी मेरी

पर मुलाक़ात रोज़ होती थी

तुम्हारी निर्भीकता लुभाती थी

रोज़ टी.वी. पे खींच लाती थी

रेडियो से आरम्भ कर

बदले कई चैनल

कुछ नहीं बदला 

तो नहीं बदला अपना तेवर...

कोई भी हो तुम, झिझकते नहीं थे

प्रश्न जब पूछते, हिचकते नहीं थे

मुस्कुरा कर के दंग करते थे

“राजनेता” पे व्यंग करते थे

ज्वलंत मुद्दों को तुम उठाते थे 

राष्ट्रवाद हुर्रियत को भी सिखाते थे

देश विरोधी नारे जे.एन.यू. के हों

या मालदा, धूलागढ़ की हिंसा हो

तीन तलाक़ की चाहे हो ख़िलाफ़त 

हो कोई भी प्रतिपक्ष का राजनीतिज्ञ

तुम अपने तीखे प्रश्नों से 

कर देते थे विचलित

प्रतिपक्षी जब शोर मचाते चंद

तुम अपने आक्रामक तर्कों से 

बोलती उनकी कर देते थे बन्द

कैराना का हो पलायन

या हो आतंकवाद

तुम करते नहीं थकते थे

सबका प्रतिवाद

मन को नहीं सुहाया

ऐसे तुम्हारा जाना...

लगता है आज मुझको

अपना कोई गया है

गुज़रा हुआ ज़माना

आता है याद मुझको

साथी कोई पुराना 

आता है याद मुझको

याद आए जैसे कोई

गाना बड़ा पुराना...

ओ जाने वाले हो सके तो,

लौट के आना...

रोहित सरदार... आना ( सरदाना )

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