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रचनाकार - ''वंदना विशेष गुप्ता'' (लखनऊ) |
आप सा जब हमें रहनुमा मिल गया
मंजिलों का हमें रास्ता मिल गया
आ गए होश ख़ुद ही ठिकाने मेरे
दोस्तों से हमें जब दगा मिल गया
तेल सच्चाई का जिसकी बाती में था
वो दिया आंधियों में जला मिल गया
ज़ख्म पिछला भरा भी नहीं था अभी
आपसे ज़ख्म फ़िर से नया मिल गया
राज़ उल्फत का जब से बताया तुम्हें
हर जुबां को मेरा तज़किरा मिल गया
खूब अब तुम निहारा करो वन्दना
हाथ में अपके आईना मिल गया