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“ये वादा है” - शैलेन्द्र श्रीवास्तव

Friday, May 28, 2021

/ by Dr Pradeep Dwivedi

रचनाकार- शैलेन्द्र श्रीवास्तव
प्रसिद्ध अभिनेता व लेखक

सखी

कल तुमने अपने

प्यारे हाथों से बनाए

और दिलकश सजाए 

व्यंजनों का 

व्हाटसएप से

चित्र भेजा था...

मुझे ललचाने का 

बहलाने, फुसलाने का

दिलकश और ऊमदा...

सामान भेजा था।

गोया तुम चाहतीं थीं...

खाने मैं घर पे चला आऊँ

वो सारा कुछ जो भी तुमने

तहे दिल से पकाया था

उसे खा लूँ...

और उसकी प्यारी सी ख़ुशबू

मैं दिल में जज़्ब भी कर लूँ

वो दिलकश सी बिरयानी...

वो ऊमदा हलीम...

वो चटपटे दही-भल्ले...

वो मीठी खीर और सब कुछ...

जो भी तुमने बनाया था...

मेरी ख़्वाहिश थी

आकर मैं ज़ुबाँ से

लुत्फ़ उसका लूँ

गुलाब और केवड़े

की प्यारी ख़ुशबू

दिल में मैं भर लूँ

मगर अफ़सोस... 

कुछ मजबूरियाँ हैं

आ नहीं सकता

वबा ने जो क़हर ढाया है

बतला भी नहीं सकता

जो मिलना दूर से दो गज़ से हो

वो मिलना... मिलना..  क्या...!!!

मैं दो गज़ दूर से मिलने

नहीं... मैं आ नहीं सकता

ढँका नक़ाब से चेहरा

हो तेरा भी और मेरा भी

नक़ाबपोश ये चेहरा

तुम्हें दिखला नहीं सकता..

मेरा वादा है तुमसे...

मिलने आऊँगा मैं उस दिन

गले मिलने के लायक़

हम हो जाएँगे जिस दिन

कि जब बन्दिशें होंगी नहीं

पहरा नहीं होगा

कि जब मेरा और तेरा भी

चेहरा खुला होगा

किसी के दिल पे कोई ज़ख़्म

जब गहरा नहीं होगा

कि जब महफ़ूज़ सब होंगे 

ये दुनियाँ पहले सी होगी

ज़रूर आऊँगा मैं उस दिन...

हाँ...मैं आऊँगा उस दिन..

ये वादा है...

               ये वादा है...

                             ये वादा है...

                 

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