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अमेठी में ऐसे भी फटे हाल, प्रशासन के लंच से कट रही जिन्दगी

 


हरिकेश यादव-संवाददाता (इंडेविन टाइम्स)

अमेठी। 

०खुले आसमान के नीचे जिन्दगी जीने को मजबूर महिला

०अमेठी के समाजसेवी भी कोरोना काल मे मदद को नही आ रहे आगे

०राजनीतिक दलों के नेता भी मदद को तैयार .

अमेठी में त्रिस्तरीय चुनाव खत्म हुए चंद दिन  भी  नहीं बीते हैं कि तथाकथित समाजसेवी भी अमेठी की भर्ती से नदारद हो गए अभी कुछ दिन पहले बड़े बड़े  दावों के साथ गरीब जनता से वादा करते थे कि हम विकास की गंगा बहाएंगे ।गरीबों की मदद के लिए हमेशा 24 घंटे तैयार रहेंगे ।लेकिन चुनाव परिणाम आते ही समाजसेवी वा राजनैतिक दल गरीबों की मदद करने को तैयार नहीं है जिसका जीता जागता उदाहरण अमेठी रेलवे स्टेशन पर देखने को मिला ।समय के साथ  बहुत बदलाव देखने को मिला लेकिन अमेठी के वक्त में परिवर्तन नहीं आया। धूप, सर्द, वारिस में तन नहीं ढक पातीं ।एक ऐसी पैंतालीस वर्षीय महिला रेलवे स्टेशन अमेठी के बाहर फुटपाथ पर जिन्दगी गुजार रही है ।

अभी तक यात्रियों का भरोसा रहा लेकिन वक्त ने उसे भी छीन लिया। ऐसे कोरोना वायरस महामारी के लाक डाऊन में ट्रेन ही नहीं आती है तो ऐसे में अमेठी तहसीलदार ने लंच पैकेट दोपहर के डेढ़ बजे महिला के पास पहुंचवाते है। इसी लंच के सहारे से महिला अपना दिन रात गुजर रहीं हैं। 

अब तक प्रशासन ने पड़ताल नहीं की। महिला कहाँ से आयी?कौन है?

जबकि अमेठी सांसद एवं केंद्रीय मंत्री महिला, बाल विकास एवं बस्त्र मंत्रालय भारत सरकार जो इसी क्षेत्र से जुड़ी हैं। दुःख की बात है;उनको इस अजूबी घटनाक्रम की जानकारी कब होगी,उन्हे महिला होने के नाते चिंता होनी चाहिए ।

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नारी शक्ति मिशन का  नारा बुलंद कर रखा हैं। इन महिलाओं को लिए क्या अलग से सरकार काम करेंगी? सरकार महिला के प्रति जवाबदेही से नहीं हट सकतीं हैं। 

अमेठी के प्रमुख राजनीतिक दलों भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी कांग्रेश, आम आदमी पार्टी, बहुजन मुक्ति मोर्चा के समाजसेवी भी इस कोरोना काल मे समाज सेवा से पीछे हट गए हैं अथवा नदारद हो गए हैं  जो लाचार महिला की मदद के लिए आगे नही आ रहे हैं । यह कहना बहुत ही मुश्किल लग रहा है कि आखिर समाजसेवी कहां गायब हो गए।

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