वंदना विशेष गुप्ता लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
अश़्कों के मोतियों को ना नीर तुम समझना
विरहा की आग की अब तासीर तुम समझना
बदले अगर ज़माना पर तुम बदल न जाना
इस प्यार के बंधन को ज़ंज़ीर तुम समझना
दिल पे हमारे तेरी हरपल रहे हुक़ूमत
बस हमको अपनी हरदम जागी़र तुम समझना
तन्हाईयों में हरदिन कटती हैं मेरी रातें
रोता है दिल तड़प के मेरी पीर तुम समझना
तुमको तलाशती हैं हरपल मेरी निगाहें
आंखों में जो छुपी है तस्वीर तुम समझना
मायूस "वंदना" तुम हर्गिज़ कभी न होना
अपनी जु़दाई को भी तक़दीर तुम समझना