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रचनाकार - शैलेन्द्र श्रीवास्तव प्रसिद्ध अभिनेता व लेखक |
किसकी साज़िश है ये पता ही नहीं।
ज़िन्दगी अब तेरा मज़ा ही नहीं।।
मर्ज़ क्या है ये सबको है मालूम
मर्ज़ की क्या दवा पता ही नहीं।।
वो मुल्क़ जिसने सबका क़त्ल किया।
उसकी हो क्या सज़ा पता ही नहीं।।
आदमी आदमी से डरने लगा।
अब किसी से कोई वफ़ा ही नहीं।।
जाने कैसा है ये अज़ाब आया।
कुछ किसी को भी सूझता ही नहीं।।
सारे इल्ज़ाम मेरे सर मढ़ दो।
अब तुम्हारी कोई ख़ता ही नहीं।।
इतने टुकड़ों में मैं तकसीम हुआ।
आईना मुझको जानता ही नहीं।।
फ़ोन बजता है तो डर लगता है।
हो बुरी क्या ख़बर पता ही नहीं।।
इतने रिश्तों को खो चुका हूँ मैं।
दर्द की अब तो इंतहा ही नहीं।।
सारी दुनियाँ गिरा दे नज़रों से।
कह दे ज़ालिम से वास्ता ही नहीं।।
ऐ ख़ुदा अब तो रहम कर मौला।
बिन तेरे कोई रास्ता ही नहीं।।