इंडेविन न्यूज नेटवर्क
रचनाकार - शैलेन्द्र श्रीवास्तव प्रसिद्ध अभिनेता व लेखक |
“भारत”
“वसुधैवकुटुम्बकम” की
आस्था का देश
मानवीय सम्बन्धों… मूल्यों की
परम्परा का देश
मर्यादा पुरुषोत्तम “राम” का देश…
जिनके प्रेम, श्रद्धा, सम्मान में
अनुज लक्ष्मण ने
स्वीकृत किया था
संग-संग वनवास…
अनुज भरत ने सिंहासन पर
राम चरण-पादुका रख
सम्भाला था राज-काज…
उसी महान देश की
विडम्बना है, त्रासदी है…
ये विघटन काल है…
सम्बन्ध छूट रहे हैं
कुटुम्ब टूट रहे हैं
कौटुम्बिक सम्बन्ध
अर्थ खोते जा रहे हैं
रिक्त होते जा रहे हैं
षड्यन्त्र रचे जा रहे हैं
शत्रुओं द्वारा नहीं…
स्वजनों द्वारा
स्वजनों के विरुद्ध…
माता-पिता के विरुद्ध
भाई-भाई के विरुद्ध
बहन-बहन के विरुद्ध
बहन-भाई के विरुद्ध
प्रियजनों के विरुद्ध
स्वजनों द्वारा प्रदत्त पीड़ा…
चीर देती है… फाड़ देती है…
अंतस को भीतर से…
हृदय विदारक होती है
कष्टदायी होती है
सम्पत्ति विवादजन्य हिंसा, हत्या
दुर्भाग्यपूर्ण होती है
आज स्वार्थ सर्वोपरि है
सहृदयता, प्रोत्साहन का स्थान
अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष ने
ग्रहण कर लिया है
करुणा, प्रेम, वात्सल्य
अर्थहीन हो चुके हैं
होड़ लगी है… ‘होड़’…
आर्थिक स्पर्धा की
स्वयं को सर्वोत्कृष्ट
समृद्ध सिद्ध करने की
स्वजनों को नीचा दिखाने की
पराजित करने की
चोट पहुँचाने की
भावनात्मकता,आध्यात्मिकता पर
हावी है… भौतिकतावाद
कुछ सिद्ध करना चाहते हैं हम!!!
प्रदर्शित करना चाहते हैं हम!!!
अपनों से, जीतना चाहते हैं हम!!!
कितनी सुखद स्मृतियाँ हैं…
अपने ही पूर्वजों की
कुटुम्ब में किसी की भी उपलब्धि
कुटुम्ब की होती थी
समय कैसा भी हो
एकता तो होती थी
कुल के वरिष्ठ
येन केन प्रकारेण
स्वस्वप्नों की बलि देकर भी
करते थे सबका कल्याण
कोई आभाव कष्ट ना हो
ध्यान रखते थे
रहे कुटुम्ब सुरक्षित
ये भान रखते थे
अतिथि पृथ्वी पे हैं
जाना है… ज्ञान रखते थे
पूर्वजों से नहीं सीखा
तो हम पछताएँगे
समृद्धि कितनी भी हो…
अपने कहाँ से लाएँगे
आचरण ये भविष्य होगा तो
होंगे दुर्लभ संयुक्त कुटुम्ब…
दूरदर्शी थे पूर्वज
घर में साथ रहते थे
कोई त्रुटि हो भाँप लेते थे
घर का सम्मान ढाँप लेते थे
कौटुम्बिक एकता पर
उन्हें गर्व था
संयुक्त कुटुम्ब में
एक छत के नीचे…
प्रतिक्षण एक पर्व था
उत्सव था… आनन्द था
हर्ष था… उत्कर्ष था…