![]() |
रचनाकार - सीमा मोटवानी फैज़ाबाद |
जो बिछड़ गया सो बिछड़ गया,
उसका न मलाल कर,
दिल ज़िन्दा है अभी सीने में,
कुछ उसका भी ख़्याल कर,
अभी राह में आयेंगें मोड़ नये,
मंजिलों तक पहुँचने में हैं मुश्किलें बड़ी,,
पिछली गलियों से तू न सवाल कर,
दिल ज़िन्दा है अभी सीने में,
कुछ उसका भी ख़्याल कर,
इश्क़ नहीं खेल जीने-मरने का,
कुछ इशारा समझ तू लकीरों का,
लैला-मजनूं को तू न मिसाल कर
दिल ज़िन्दा है अभी सीने में,
कुछ उसका भी ख़्याल कर।