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लेखिका - कुसुम सिंह लता नई दिल्ली |
मन्द - मन्द मृदु मुस्कान,
थी खेल रही उसके अधर,
एक अलौकिक - सा तेज़,
था अतीव मुखपर मुखर!
गुनगुनी धूप - सी तपिस,
शीतल समीर सी खलिस,
हाँ! वो खिलता कमल,
निश्चय था तेजस्वी विमल!
अलसाये अनुपम विलोचन,
जैसे अभी देखा हो स्वप्न सुंदर,
सज रहे थे उसके भाल पर,
बेतरतीब बिखरे - से चिकुर!
बदन पर लिपटा वस्त्र आसमानी,
नायक हो कोई सुंदर कहानी,
अति सरल मृदु उसकी वाणी,
सचमुच था वो कितना रूमानी!
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