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देवशयनी एकादशी :भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में रहेंगे, मांगलिक कार्यों पर लगेगा विराम

आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी 20 जुलाई को है। इसे देवशयनी एकादशी कहा गया है। इस तिथि को भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा के लिए चले जाएंगे। वे चार महीने तक निद्रा में रहेंगे। इन चार महीने में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और यज्ञोपवीत जैसे मांगलिक संस्कार वर्जित माने गए हैं।

देवशयनी एकादशी से लेकर देव प्रबोधिनी (उठनी) एकादशी तक यानी 4 माह तक शुभ कार्य नहीं हो सकेंगे। इस काल को चातुर्मास कहते हैं। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवशयनी एकादशी का बड़ा धार्मिक महत्त्व है। प्रचलित मान्यता अनुसार भगवान विष्णु सृष्टि के संचालन का कार्यभार 4 माह के लिए महादेव को सौंप देते हैं। इसलिए मंदिरों और धर्म स्थानों में देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

एकादशी व्रतोपासना से जीवात्मा की शुद्धि होती है
एकादशी व्रत का उल्लेख पद्मपुराण, विष्णु पुराण में भी मिलता है। सनातन धर्म के अनुसार 1 वर्ष में 24 एकादशी होती है। धर्मशास्त्रों एवं पुराणोक्त ऋषि वचनों के अनुसार हर एकादशी के अलग-अलग नियम और फल हैं। फिर भी शास्त्रोक्त ढंग से एकादशी का व्रत एवं पारणा करने वाले व्रतकर्ता प्राणी के लिए चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सहज हो जाते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों और ऋषि परंपरा के अनुसार मानव योनी 84 लाख योनियों में सबसे बड़ी कर्म प्रधान योनी है। एकादशी व्रत को संकल्पपूर्वक पूर्ण करने और देवों के प्रति सच्ची निष्ठा रखने से जीवात्मा की शुद्धि होती है।

वामन अवतार से जुड़ी है देवशयनी एकादशी
देवशयनी एकादशी वामन अवतार से जुड़ी है। दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग को अपने अधीन कर लिया। इससे सभी देवता और राजा बलि की माता अदिति दुखी हुई और अपने पुत्र के उद्धार के लिए भगवान विष्णु की आराधना कर वर मांगा। तब विष्णु ने वरदान दिया कि मैं आपके गर्भ से वामन अवतार लेकर देवराज इंद्र को पुनः स्वर्ग की सत्ता दूंगा और राजा बलि को पाताल का राज्य सौंप दूंगा।

राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में वामन देवता उपस्थित हुए। उनके इस अवतार को शुक्राचार्य समझ गए और बलि को सतर्क भी किया पर प्रभु की लीला अपरंपार है, वामन देवता ने दान में तीन पग भूमि मांगी। विष्णु ने वामन अवतार में अपने विराट स्वरूप से उसी समय एक पग में भू-मंडल, दूसरे से स्वर्गलोक और तीसरे पग नापते समय राजा बलि को पूछा कि इस दान में तो कमी है। इसे कहां रखूं।

प्रभु की लीला को देख राजा बलि ने कहा कि प्रभु अब तो मेरा मस्तक बचा है। यहीं रख दीजिए, जिससे वह रसातल पाताल चला गया और भगवान विष्णु ने वामन अवतार में उन्हें कहा कि दानियों में तुम्हे सदा याद रखा जाएगा और तुम कलियुग के अंत तक पाताल के राजा रहोगे। इसलिए राजा बलि ने भी प्रभु से वरदान मांगा की हे, प्रभु आप मेरे इस साम्राज्य की रक्षा के लिए मेरे साथ पाताल लोक की रक्षा करें। भगवान वामन ने उन्हें वरदान दिया। इसलिए भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से 4 मास तक पाताल लोक क्षीरसागर में योगनिद्रा पर रहकर उनके राज्य की रक्षा करते हैं।

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