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मरीज को मृत समान बना देती है फाइलेरिया - सीएमओ

                                       

o पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसील होते हैं फाइलेरिया के लक्षण

 हरिकेश यादव-संवाददाता (इंडेविन टाइम्स)

अमेठी ।

फाइलेरिया दुनिया की दूसरे नंबर की ऐसी बीमारी है जो बड़े पैमाने पर लोगों को विकलांग बना रही है। यह जान तो नहीं लेती है, लेकिन जिंदा आदमी को मृत के समान बना देती है। इस बीमारी को हाथी पांव के नाम से भी जाना जाता है। रोग के शुरू होने पर फाइलेरिया की पहचान आसान नहीं है एवं इस बीमारी के लक्षण बीमारी के कीटाणुओं के शरीर में प्रवेश के कई वर्षों बाद दिखाई देते हैं जो हाथी पांव, हाइड्रोसील का यूरिया आदि के रूप में प्रकट होते हैं l  हाथी पांव का कोई इलाज नहीं है l लिंफेटिक फाइलेरियासिस को ही आम बोलचाल की भाषा में फाइलेरिया कहा जाता है। उक्त जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दुबे ने दी, उन्होंने बताया कि यह बीमारी मच्छरों द्वारा फैलती है, जब यह मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रस्त व्यक्ति को काटता है तो वह संक्रमित हो जाता है। फिर जब यह मच्छर किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो फाइलेरिया के कीटाणु रक्त के जरिए उसके शरीर में प्रवेश कर उसे भी फाइलेरिया से ग्रसित कर देते हैं लेकिन ज्यादातर संक्रमण अज्ञात या मौन रहते हैं और लंबे समय बाद इनका पता चल पाता है। इस बीमारी का कारगर इलाज नहीं है। इसकी रोकथाम ही इसका समाधान है।

डॉ. दुबे ने बताया कि इसीलिए सभी को दवा खिलाई जाती है और साल में एक बार पांच साल तक अगर कोई व्यक्ति दवा खा ले तो उसे फाइलेरिया नहीं होगा । उन्होंने बताया कि इस बार भी 12 जुलाई से विशेष अभियान शुरू किया गया है जिसमें स्वास्थ्य कर्मी घर-घर जाकर लोगों को दवा अपने सामने खिला रहे हैं।  आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव जितने सूज जाते हैं इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है। वैसे तो फाइलेरिया का संक्रमण बचपन में ही आ जाता है, लेकिन कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

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