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IIT-कानपुर की स्टार्टअप कंपनी ने तैयार किया खराब फूलों से लेदर

कानपुर 

आईआईटी कानपुर के इंक्यूबेशन सेंटर में इंक्यूबेटेड स्टार्टअप कंपनी ने मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों की प्रोसेसिंग कर लेदर बनाना शुरू किया है। इसे फ्लेदर नाम दिया गया है। स्टार्टअप कंपनी के फाउंडर अंकित अग्रवाल ने बताया कि फूलों से बना मटेरियल लेदर का बेहतर विकल्प है। इंटरनेशनल मार्केट में फूलों से बने फ्लेदर के प्रोडेक्ट की डिमांड है। इससे बैग, पर्स, जैकेट, जूते और बेल्ट तैयार हो रहे हैं। अंकित का दावा है कि चमड़े से बने लेदर के प्रोडक्ट से कहीं ज्यादा बेहतर फ्लेदर के प्रोडक्ट हैं।

पहले अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाते थे
अंकित ने बताया, मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों को इकट्ठा करते है और उनकी प्रोसेसिंग करके अगरबत्ती, धूपबत्ती और अब फ्लेदर (फूलों से बना लेदर) बनाता है। इससे कचरा मामूली होता है और प्रदूषण भी नहीं होता है। करोड़ों की कमाई और हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। हम लोग पहले रोजाना करीब साढ़े तीन टन फूल कानपुर के मंदिरों से उठाते थे। इससे अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाते हैं। हमने ढाई साल की रिसर्च के बाद एक ऐसा मैटीरियल तैयार किया है जो चमड़े को टक्कर दे रहा है। यह मैटीरियल आईआईटी के छात्र-छात्राओं की टीम के साथ मिलकर हमने स्टार्टअप स्थापित किया। फिर दो साल तक आइआइटी कानपुर की अत्याधुनिक प्रयोगशाला में कई प्रयोग करने के बाद यह फ्लेदर बनाया गया। इन सब में नचिकेत ने अन्य टीम मेंबर्स के साथ अहम भूमिका निभाई।

प्रदूषित हो रही गंगा को बचाने के लिए यह शुरुआत की
आईआईटी कानपुर से केमिकल इंजीनियरिंग करने वाले नचिकेत ने बताया, हम लोगों ने गंगा में बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने के लिए यह फ्लेदर तैयार किया है। लेदर बनाने के लिए पहले जानवर को मारना पड़ता है और उसके बाद उससे निकालने वाले लेदर को 9 बार अलग अलग यूनिट में प्रोसेस किया जाता है। इस प्रोसैस में जो भी गंदगी निकलती है वह सब गंगा में प्रवाहित की जाती है, जिससे गंगा प्रदूषित होती जा रही है। हम लोगों ने फूलों से ऐसा मैटीरियल तैयार किया है जो हूबहू चमड़े की तरह दिखता है और उसी की तरह मजबूत भी है। इसके साथ ही यह उससे कहीं ज्यादा गर्माहट भी देता है। इसे हम लोग बिना केमिकल के प्रोसेस कर के तैयार करते है और आखिरी में इस पर सिर्फ फिनिशिंग के लिए पोलिश करते है जिससे प्रोडक्ट पर शाइनिंग आ जाती है। जैसे विदेशों में ठंड काफी पड़ती है उस लिहाज से यह असली लेदर से भी ज्यादा गर्माहट पैदा करता है। इस मैटीरियल को बनाने में बिजली भी कम लगती है और इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता है।

आईआईटी कानपुर की मदद से तैयार किया मैटीरियल
आईआईटी कानपुर की मदद से फूल स्टार्टअप स्थापित कर इनोवेशन में जुट गए। उन्होंने दो सालों तक कड़ी मेहनत के साथ ही अत्याधुनिक लैब में कई रिसर्च करने के बाद फूलों के पोषण से बैक्टेरिया को विकसित कर फ्लेदर बनाने में सफलता हासिल की है। इस रिसर्च में आईआईटी के स्टार्टअप इनक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेंटर के प्रभारी प्रो. अमिताभ बंदोपाध्याय ने भी काफी मदद की। वर्तमान में अंकित ने खुद की पनकी इंडस्ट्रियल एरिया कानपुर में एक फैक्ट्री लगाई है। जहां बड़े पैमाने पर फ्लेदर को विकसित कर रहे है। इस फ्लेदर को पेटा यानी पीपुल्स फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल ने सर्टिफिकेट भी दिया है। साथ ही आईआईआरटी (इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंडस्ट्रियल रिसर्च एंड टॉक्सीकोलॉजी) ने भी इस रिसर्च पर अपनी मुहर लगा दी है। अंकित ने इसका पेटेंट भी करवा लिया है।

14 लाख का पैकेज छोड़ शुरू किया था स्टार्ट-अप
आईआईटी कानपुर इनक्यूबेशन स्टार्ट अप फूल के फाउंडर अंकित अग्रवाल ने अपने सपने को पूरा करने के लिए 14 लाख की नौकरी छोड़ दी थी। 2016 में शुरू हुए इस स्टार्टअप की शुरुआत मात्र दो लोगों से हुई थी। चार साल में अंकित 123 लोगों को नौकरी दे चुके हैं। उनका काम कानपुर के अलावा तिरुपति में भी चल रहा है।

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