![]() |
रचनाकार - सीमा मोटवानी फैज़ाबाद |
कम कर दो वेदना,
जो भेदती है मन को।
वो असहनीय पीड़ा
तुम्हारे विछोह की
जीवन-मृत्यु का
पर्याय बन पड़ी है।
कम कर दो वेदना,
जो संकुचित रहती है
प्रश्नों के आवरण में निरुत्तर
खोजती है प्रेम को
तुम्हारे मौन में।
कम कर दो वेदना,
जिसे सावन नही सुहाता
विनती करती
रिमझिम फुहारों से
कि पिया बिन
अब कुछ न भाता,
कि पिया बिन
अब कुछ नही भाता।