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तुम जा रहे हो,रिश्ते को शून्य में छोड़ कर - सीमा मोटवानी

Thursday, August 12, 2021

/ by Dr Pradeep Dwivedi

रचनाकार - सीमा मोटवानी
फैज़ाबाद

सुनो,,

तुम जा रहे हो,रिश्ते को 

शून्य में छोड़ कर,

तुम स्वतंत्र थे चुनने को,

मेरी उपस्थिति या

मेरी रिक्तता को,

तुमने रिक्तता चुन कर,

मुझे बंधनमुक्त कर दिया,

अब कमरे की छत से झांकता

शून्य हज़ारों सवाल करता है!

टकटकी लगा कर 

घूरती रहती हूँ उसको.

चाँद भी आया था 

खिड़की की ओट से देखने,

समझा भेजा उसको भी

कि अब तुम यहाँ नहीं रहते.

सुनो,

नये शहर में तुम्हें लोग नये मिलेंगें,

पर मौसम तो वही पुराने होंगें !

वहीं चाँदनी रातें होंगी,

वही बरसातें होंगी,

फिर !

क्या तुम उस रिक्तता को 

कभी भर पाओगे !

क्या फिर तुम लौट आओगे ?

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