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लेखक - योगेन्द्र नाथ द्विवेदी लखनऊ |
है जन्म-दिवस उस मानव का,
हॉकी का जो था पूर्ण चन्द्र।
हॉकी के जादूगर अद्भुत,
हैं धन्य धनंजय ध्यान चंद्र।।
प्रयाग राज में जन्म लिया,
दिल्ली में हुआ देहावसान।
सन २८ से ३६ तक ,
निर्बाध रहा विजयाभियान।।
हॉकी की स्टिक से जब,
मिलन गेंद का होता था।
तब ‘ध्यान’ गेंद पर हरपल,
अपलक अटूट होता था।।
स्टिक से गेंद जुदा होकर,
प्रतिद्वंदी तक न पहुंच पाती।
साथी को देकर पास सदा,
थी गेंद गोल तक ही जाती।।
वह अप्रतिम ऐसे प्रतियोगी,
प्रतिद्वंदी सब विस्मित रहते।
बरसात गोल की जब करते,
दर्शक सारे हर्षित रहते।।
दे ‘भारत रत्न’ मरणोपरांत,
हम दूर करें अपना ‘दूषण’।
था भारत रत्न का अधिकारी,
जीते जी रहा ‘पद्म भूषण’।।
अध्ययन में अभिरुचि रखते जो,
विद्यावान कहे जाते।
खेल सहित पढ़ते लिखते जो,
प्रतिभावान कहे जाते।।
हम सीख खेल से यह ले लें,
जीवन को हम ऐसे जी लें।
जबतक न लक्ष्य को हम पा लें,
विश्राम न हम तबतक ले लें।।