तेरे इनकार से, इक़रार से डर लगता है
धूप से साया-ए-दीवार से डर लगता है
नींद आती है तो सोने नहीं देती ख़ुद को
ख़्वाब और ख़्वाब के आज़ार से डर लगता है
हम तो अपनों की इनायत से परेशां हैं निभा
क़बा हमें शोरिशे अग्यार से डर लगता है
रोज़ बढ़ जाती है कुछ दर्जा घुटन सीने की
रोज़ कटते हुए अश्जार से डर लगता है
नाख़ुदा तेरे रवय्ये से सहम जाती हूँ
वरना कश्ती से न पतवार से डर लगता है।