![]() |
नीरजा शुक्ला 'नीरू' |
वतन है मेरी रग रग में
वतन है मेरी साँसों में
ये मेरे दिल में बसता है
है बस्ती की फिज़ाओं में
ये मंदिर और मस्ज़िद में
अजानों प्रार्थनाओं में
ये मेरी हर इबादत में
है मेरी हर दुआओं में
बरसता है ये बरखा में
है ये काली घटाओं में
ये हँसता झोपड़ों में है
हँसे अट्टालिकाओं में
ये माथे की है बिंदिया में
खनकता कंगनाओ में
ये मेरी हर अदा में है
मैं हूँ इसकी अदाओं में
परेशां जब भी होती हूँ
है लेता मुझको बाहों में
सुकूँ देता है ये मुझको
मैं हूँ इसकी पनाहों में
यहाँ की रज बड़ी पावन
है ये हल और किसानों में
है इसके प्यार की ख़ुशबू
घुली है इन हवाओं में
वतन मेरा खरा सोना
चमकता चहुँ दिशाओं में
इसी पे जां निछावर है
है ये मेरी वफ़ाओ में
वतन है मेरी....