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सागर की बूँद बन उसी का जो हो गया - सीमा मोटवानी

Wednesday, September 1, 2021

/ by Dr Pradeep Dwivedi

रचनाकार - सीमा मोटवानी
फैजाबाद (UP)

वक़्त की गोद लिपट जो सो गया,

वो लम्हा, किसे पता!

सागर की बूँद बन उसी का जो हो गया 

वो लम्हा,किसे पता!


खोजते फिरे सुबह-शाम बस सुकूँ ही सुकूँ,

तलाश फिर क्यों न हुई पूरी,किसे पता!


तुम तो बारिश थे इश्क़ की सूखी ज़मी के लिए,

प्यास भी क्यों रही अधूरी,किसे पता!


ख़्वाबों-ख़्वाबों पलको तले उम्मीदों की दौड़ लगाते फिरते थे,

अब आँसुओ की है कितनी थकन ढेरी, किसे पता!

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