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रचनाकार - सीमा मोटवानी फैजाबाद (UP) |
वक़्त की गोद लिपट जो सो गया,
वो लम्हा, किसे पता!
सागर की बूँद बन उसी का जो हो गया
वो लम्हा,किसे पता!
खोजते फिरे सुबह-शाम बस सुकूँ ही सुकूँ,
तलाश फिर क्यों न हुई पूरी,किसे पता!
तुम तो बारिश थे इश्क़ की सूखी ज़मी के लिए,
प्यास भी क्यों रही अधूरी,किसे पता!
ख़्वाबों-ख़्वाबों पलको तले उम्मीदों की दौड़ लगाते फिरते थे,
अब आँसुओ की है कितनी थकन ढेरी, किसे पता!