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भारत में बढती भूखमरी की स्थिति ने विकास नीति की खोली पोल - डॉ धनंजय सिंह

विश्व भूख दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित 

हरिकेश यादव
इंडेविन न्यूज नेटवर्क (अमेठी)

अमेठी। देश की निरन्तर बढ़ती जनसंख्या के कारण आजादी के 75 वर्षों बाद भी भूखमरी की समस्या बनी हुई है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 ने भारत के विकास की पोल खोल दी है। भारत 116 देशों की सूची में 101वें स्थान पर था। भारत सरकार ने कहा कि भुखमरी का आकलन करने के लिए जो पद्धति अपनाई गई है, वह पूर्णतया अवैज्ञानिक है। भारत वैश्विक भुखमरी सूचकांक में निरंतर नीचे फिसलता जा रहा है। वर्ष 2014 में भारत 76 देशों की सूची में 55 वें स्थान पर था, वहीं पाकिस्तान एवं बंगलादेश 57 वें स्थान पर थे। वर्ष 2021में  भारत बांग्लादेश (76) एवं पाकिस्तान (92) से भी नीचे चला गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2015 के 17 सतत विकास लक्ष्यों में गरीबी एवं भूखमरी को प्रथम एवं द्वितीय स्थान पर रखा है। इसमें 2030 तक दुनिया से गरीबी और भुखमरी को समाप्त करने का लक्ष्य‌‌ बनाया गया है।

वैश्विक महामारी कोरोना ने भारत ही नहीं विश्व के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव के कारण अनेक देशों में लॉक डाउन करना पड़ा। भारत में लाखों मजदूरों को शहरों से गांवों की तरफ पलायन करना पड़ा। शहर हो या गांव हर जगह आम आदमी के लिए अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना कठिन हो गया। इस स्थिति पर चर्चा करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत के सामने भारत सरकार का पक्ष रखते हुए 18 जनवरी, 2022 को अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि "भारत में एक भी मौत भुखमरी से नहीं हुई है।" उसी वक्त मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना के साथ पीठ में शामिल जस्टिस एस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली ने कहा "क्या हम इस बात का पूरी तरह से यकीन कर लें कि भारत में एक भी मौत भुखमरी से नहीं हुई है ?" 

सर्वोच्च न्यायालय ने अटार्नी जनरल से कहा "क्या  इस कथन को रिकॉर्ड में लिया जाए?" इस प्रश्न का स्पष्ट जवाब सुप्रीम कोर्ट को नहीं मिल सका। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि  राज्यों ने भुखमरी से होने वाली मौत के आंकड़े को नहीं दिया है, लिहाजा उन्हें इसकी सही जानकारी प्राप्त करने के लिए समय चाहिए। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों से भी भुखमरी व कुपोषण से मौत के आंकड़ों को देने का आदेश दिया है। 

भारत में भुखमरी से मौत को लेकर दशकों से उलझे और अनुत्तरित इस सवाल पर डाउन टू अर्थ ने छानबीन में पाया कि भुखमरी की पहचान करने वाली जटिल प्रक्रिया 'ऑटोप्सी" का प्रभावी विकल्प अब तक नहीं बन सका है। यहां तक की झारखंड जैसे राज्य में भी भूख से मौत का पता लगाने वाले प्रोटोकॉल की उपस्थिति के बावजूद भुखमरी की रिपोर्टिंग नहीं की जा रही है। 

राइट टू फूड कैंपेन के अनुसार  2015 से 2020 के बीच देश के  तेरह राज्यों में 108 मौतें भुखमरी से हुई थी। इसमें झारखंड में सर्वाधिक 29 मौतें हुई थी, उत्तर प्रदेश में 22 , उड़ीसा में 15 , बिहार में 8 मौतें, कर्नाटक में 7,  छत्तीसगढ़ में 6,  पश्चिम बंगाल में 6, महाराष्ट्र में 4, मध्य प्रदेश में 4, आंध्र प्रदेश में 3, तमिलनाडु में 3, तेलंगाना में 1 तथा राजस्थान में 1 मौत हुई थी।इस दौरान अधिकांश मौतें उन राज्यों में हुई, जो बहुआयामी गरीबी झेल रहे थे। नीति आयोग के पहले बहुआयामी गरीबी सूचकांक में बिहार (51.9 फीसदी) के साथ शीर्ष पर था, जबकि उसके बाद झारखंड (42.16), उत्तर प्रदेश (37.9 फीसदी) और मध्य प्रदेश (36.6 फीसदी) शामिल थे ‌। 

भारत में आज भी भुखमरी का आकलन करने का निश्चित एवं स्पष्ट मापदंड नहीं है।झारखंड में भूख से होने वाली मौतों के मामलों की जांच के लिए एक प्रोटोकॉल बनाया गया था। जिसे 28 फरवरी 2018 को खाद्य सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग की ओर से 9 सदस्यीय जांच समिति ने यह तैयार किया था। इस प्रोटोकॉल में भुखमरी यानी स्टार्वेशन के बारे में कई स्रोतों से परिभाषाएं लिखी गईं, लेकिन एक्सपर्ट के मुताबिक स्टार्वेशन डेथ की पहचान के लिए इसमें स्पष्टता में काफी कमी है। इसके अलावा इसमें भूखमरी और कुपोषण से मौत की स्पष्ट अलग पहचान के मानक नहीं हैं। 

इस प्रोटोकॉल में जय सिंह पी मोदी के हवाले से लिखा गया है कि शरीर में पोषण संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक भोजन का नियमित और निश्चित मात्रा न मिल पाना भुखमरी है। इसके अलावा तीन तरह की भुखमरी का जिक्र इस प्रोटोकॉल में किया गया है। पहली है सुसाइडल, दूसरी है होमोसाइडल और तीसरी एक्सीडेंटल। इन तीनों में दुर्लभ सुसाइडल स्टार्वेशन है जबकि बड़ी संख्या में भुखमरी से मौत का मामला एक्सीडेंटल स्टार्वेशन में ही पाया जाता है। जो कि अकाल, आपदा, युद्ध जैसी घटनाओं के कारण होता है। वहीं वृद्ध, असहाय, मानसिक रोगी, अनाथ बच्चे को पर्याप्त भोजन न मिल पाना होमोसाइडल स्टार्वेशन कहलाता है। 

झारखंड में राइट ऑफ फूड कैंपेन से जुड़े कार्यकर्ता सिराज ने डाउन टू अर्थ को बताया कि राज्य में प्रोटोकॉल बना जरूर लेकिन वह अनुपयोगी रहा है। झारखंड में फील्ड सर्वे के दौरान मैंने पाया है कि जहां घटनाएं हुईं वहां ज्यादातर लोग पहले से ही एक वक्त का खाना नहीं खाते थे और वे धीरे-धीरे स्टार्वेशन डेथ की स्थिति में पहुंच जाते हैं। मृतकों में अधिकांश के पास आधार कार्ड नहीं थे। 

झारखंड-बिहार में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब मृतक के पोस्टमार्टम में यह साफ हुआ है कि उनके पेट में अनाज का एक दाना तक नहीं था, फिर भी इसकी रिपोर्टिंग सरकारी एजेंसियों के द्वारा भुखमरी से मौत के रूप में नहीं की गई।

 ग्रामीण क्षेत्रों में भूखमरी  की स्थिति में मनरेगा एवं मिड डे मील जैसी योजना के लागू होने के बाद काफी सुधार आया था पर कोविड-19 ने  फिर से भूखमरी की ओर लौटा दिया। कोविड-19 के दौर में अनेक लोगों की मौत कुपोषण के कारण भी हुई है। कोविड-19 के दौरान बढ़ते संकट को देखते हुए भारत सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना 26 मार्च 2020 को प्रारंभ किया, ताकि देश का कोई नागरिक भूखा ना रह सके।यह योजना ने कोविड-19 के दौर में लोगों के लिए वरदान साबित हुआ। अप्रवासी जीवन जी रहे लोगों तक इस योजना का लाभ नहीं पहुंच सका क्योंकि उनके पास न ही, आधार कार्ड था,न ही राशन कार्ड। वे चाहकर भी इस योजना के लाभ से वंचित रहे। अमेठी के सरवनपुर में कोविड-19 के दौरान  एक वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु हुई थी लेकिन प्रशासन ने उस मौत को भुखमरी से मानने से इनकार कर दिया। ऐसे ही अनेक मामलों में प्रशासन भुखमरी से हुई मौत को स्वीकार ही नहीं करता, क्योंकि इसका कारण स्पष्ट मापदंड का अभाव है। 28 मई को विश्व भूख दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमे जाने समाजशास्त्री, अर्थ शास्त्र,शिक्षाविद, बुद्धिजीवी शमिल हुए। चर्चा और विचार विमर्श किए।

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