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डबल इंजन की ताकत ने हिमाचल के विकास को डबल तेजी से आगे बढ़ाया- पीएम मोदी

Thursday, October 13, 2022

/ by इंडेविन टाइम्स

चंबा। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज हिमाचल प्रदेश के दौरे पर हैं। पीएम ने आज चंबा में 800 करोड़ रुपये की जलविद्युत परियोजनाओं का शिलान्यास किया। प्रधानमंत्री मोदी ने 48 मेगावाट की चांजू-3 पनबिजली परियोजना और 30.5 मेगावाट की देवथल-चांजू जल विद्युत परियोजना की आधारशिला रखी। हिमाचल के लिए लगभग तीन हजार करोड़ की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना-तृतीय चरण का भी शुभारंभ भी किया। संबोधन में पीएम ने कहा कि आज, चंबा और यहां के विभिन्न गांवों को इन परियोजनाओं का उपहार मिल रहा है जो उन्हें सड़क संपर्क, बिजली और रोजगार प्रदान करेंगे। 

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि दो दिन पहले महाकाल और आज मणिमहेश के सानिध्य में आया हूं। चंबा में राजमा का मदरा एक अद्भुत अनुभव है। कहते थे कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी पहाड़ के काम नहीं आती। आज हमने उस बात को बदल दिया। अब यहां का पानी भी काम आएगा और यहां की जवानी भी जी जान से अपनी विकास की यात्रा को आगे बढ़ाएगी।

पीएम मोदी ने कहा कि, जब देश की आजादी के 100 साल होंगे तो हिमाचल भी अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा होगा। इसलिए आने वाले 25 वर्षों का एक-एक दिन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत की आजादी का अमृतकाल शुरू हो चुका है, जिसमें हमें विकसित भारत का संकल्प पूरा करना है। आने वाले कुछ महीनों में हिमाचल की स्थापना के भी 75 वर्ष पूरे होने वाले हैं। आज हिमाचल के पास डबल इंजन सरकार की ताकत है। इस डबल इंजन की ताकत ने हिमाचल के विकास को डबल तेजी से आगे बढ़ाया है।

डबल इंजन की सरकार की प्राथमिकता ये है कि लोगों के जीवन को आसान कैसे बनाएं। इसलिए हम जनजातीय क्षेत्रों, पहाड़ी क्षेत्रों पर सबसे अधिक बल दे रहे हैं। हमारी सरकार ने सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने का फैसला लिया। यह निर्णय दिखाता है कि इस सरकार को आदिवासी लोगों की परवाह है। 

हिमाचल के विकास के लिए घूमल और शांता ने अपनी जिंदगी खपा दी

अपने भाषण के दौरान पीएम हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्रियों शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मैंने इन दोनों ने हिमाचल के विकास के लिए अपनी जिंदगी को खपा दिया। कभी बिजली, कभी पानी तो कभी विकास में हक के लिए दिल्ली में जाकर गुहार लगाते थे। लेकिन दिल्ली में कोई सुनवाई नहीं होती थी।  इसलिए चंबा जैसे प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आस्था का समृद्ध क्षेत्र विकास की दौड़ में पीछे रह गया क्योंकि हिमाचल की मांगें और फाइलें भटकती रहती थीं। आज करीब 75 साल बाद मुझे इस पर अपना ध्यान केंद्रित करना पड़ा क्योंकि मैं चंबा के सामर्थ्य से परिचित था।

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