डॉ ऋतेश मिश्रा - संरक्षक (इंडेविन टाइम्स)
लखनऊ।
जम्मूद्वीप आर्यावर्त भारतखंड व हिंदुस्तान जैसे शब्दों से अलंकृत अपने भारत में आजकल सनातन का कटुविरोध जहां अपने चरम पर है वहीं साउथ ऑस्ट्रेलिया की आबोहवा में आजकल सनातन धर्म की भीनीभीनी सुगंध विस्तारित हो रही है ।आस्ट्रेलिया में इस पर एक संगठन "सनातन कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ साउथ आस्ट्रेलिया " बड़े जोरों से कार्य कर रहा है ।
कहते है कि लौकिक शिक्षा के साथ साथ अगर आध्यात्मिक शिक्षा किसी भी व्यक्ति को मिल जाए तो उसकी सफलता में संपूर्णता आ जाती है ।
इसी कथन को धरातल पर लाने का विचार अपने उत्तर प्रदेश के ह्रदय कहे जानें वाले शहर लखनऊ से उच्च शिक्षा प्राप्त डॉ प्रेम द्विवेदी जी कर रहे हैं।
सनातन संस्कृति से प्रेरित महाकाव्य श्री रामचरितमानस में एक चौपाई का अंश है कि-
"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मुरत देखी तिन तैसी"
अर्थात अगर सुशिक्षित व्यक्तिव आस्ट्रेलिया में जाकर आध्यात्म को कर्म से जोड़ रहा हो और विभिन्न विकसित देशों का साथ मिल रहा हो तो उसमें भावना से बनी मूर्ति सिर्फ़ सफलता की ही मूर्ति ईश्वरीय रूप में प्रदर्शित होगी।
इस चौपाई से ही मिलता जुलता एक प्रसंग और आता है वह यह कि एक बार कबीर दास जी से कुछ लोगों ने शरारती अंदाज में जिज्ञासा जाहिर की जिसका दोहा रूप कुछ इस प्रकार था
एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट-घट में लेटा;
एक राम का सकल पसारा,
एक राम सभी से न्यारा:
इन में कौन-सा राम तुम्हारा? ।।
कबीर दास जी ने अपने गुरु जी को अपनी उलझन बताई । यह सुनकर गुरुजी बहुत खुश हुए और बड़े जोर से हँसने लगे। हँसते हुए कबीर से कहने लगे- “बेटा! ऐसी बात करने वाले एक दिन नहीं तुम्हारे जीवन में, जीवन भर आएँगे। पर तुम्हें सजग रहना होगा। देखो यह सृष्टि विविधमयी है। जिसकी आँख पर जैसा चश्मा चढ़ा होता है, उसको भगवान का वैसा ही रूप दिखाई देता है। कोई परमात्मा को ‘ब्रह्म’ कहता है; कोई ‘परमात्मा’ कहता है; कोई ‘ईश्वर’ कहता है; कोई ‘भगवान’ कहता है। लेकिन अलग-अलग नाम लेने से परमात्मा अलग-अलग नहीं हो जाते।इसलिए जो राम दशरथ जी का बेटा है;वही राम घट घट में भी लेटा है; उसी राम का सकल पसारा है; और वही राम सबसे न्यारा भी है। लेकिन एक बात है इस दोहे मे
इस दोहे में ‘एक राम ’ चारो पंक्ति में ही एक ही हैं! तो बेटा! इस दोहे का अर्थ क्या है?
तो कबीर जी बोले- वही राम दशरथ का बेटा, वही राम घट-घट में लेटा, उसी राम का सकल पसारा, वही राम सभी से न्यारा।
खैर ईश्वर का अंतर में होना और ईश्वर को अंतर से जान लेना यह विकसित सोंच का ही उदाहरण हो सकता है ।
ठीक यही कार्य अपने आर्यावर्त में जन्में डॉ प्रेम द्विवेदी जी कर रहे है। डॉ प्रेम द्विवेदी जी अब आस्ट्रेलिया में विगत कई वर्षों से रह रहे है ।
फिलहाल "सनातन कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ साउथ आस्ट्रेलिया "(SCOSA) को इस सफल नेक काम में भारत के साथ साथ सिंगापुर , केन्या , फिजी, नेपाल और आस्ट्रेलिया जैसे देशों का भी साथ मिल रहा है ।
"सनातन कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ साउथ आस्ट्रेलिया" की मुख्य कार्यकारिणी में स्नेहल भाई ठक्कर गुजरात से , हीरेन भाई रुपरलिया गुजरात से , पियूष भाई गुजरात से , डॉ प्रेम द्विवेदी उत्तर प्रदेश से अमित कुमार फिजी से मनीष भाई गुजरात से और आनंद रायचा जी केन्या से जुड़े हुए है ।