नई दिल्ली।
भारत बुधवार को चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग' करने वाला दुनिया का चौथा और इसके दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। चांद की सतह पर भारत से पहले पूर्ववर्ती सोवियत संघ, अमेरिका और चीन ही ‘सॉफ्ट लैंडिंग' कर पाए हैं। भारत का तीसरा चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-3' बुधवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरा। यह एक ऐसी जगह है जहां अब तक किसी अन्य देश का अंतरिक्ष यान नहीं उतरा है। हाल में रूस का ‘लूना 25' इस कोशिश के दौरान दुर्घटना का शिकार हो गया था। चंद्रमा पर भेजे गए सभी मिशन पहले प्रयास में सफल नहीं रहे।
US ने 13 असफल प्रयासों के बाद हासिल की थी सफलता
पूर्ववर्ती सोवियत संघ अपनी छठी अंतरिक्ष उड़ान में सफलता प्राप्त कर पाया था। अमेरिका चांद पर ‘क्रैश लैंडिंग' के 13 असफल प्रयासों के बाद 31 जुलाई 1964 को चंद्र मिशन में सफलता का स्वाद चख पाया था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का ‘रेंजर 7' चंद्रमा की दौड़ में एक अहम मोड़ साबित हुआ क्योंकि इसने चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले 4,316 तस्वीरें भेजी थीं। इन तस्वीरों ने अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग स्थलों की पहचान करने में मदद की।
भारत ने कब शुरू किया था अभियान
भारत का चंद्र मिशन 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुआ जिसने अंतरिक्ष यान को चंद्रमा के चारों ओर 100 किमी गोलाकार कक्षा में स्थापित किया था। अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर 3,400 परिक्रमाएं कीं और चंद्रमा का रासायनिक, खनिज तथा छायाचित्र-भूगर्भिक मानचित्रण तैयार किया। इस ऑर्बिटर मिशन की अवधि दो साल थी, लेकिन 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के संपर्क संचार टूट जाने के बाद इसे समय से पहले ही रद्द कर दिया गया था।
2019 में नहीं करा सका था ‘सॉफ्ट लैंडिंग'
इसके एक दशक बाद, चंद्रयान-2 को एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के साथ 22 जुलाई, 2019 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था। चंद्रमा पर देश के दूसरे मिशन का उद्देश्य ऑर्बिटर में लगे उपकरणों के जरिए वैज्ञानिक अध्ययन करना, और चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग' की प्रौद्योगिकी और चंद्र सतह पर रोवर की चहलकदमी के प्रदर्शन का था। हालांकि, सात सितंबर, 2019 को एक सॉफ्टवेयर गड़बड़ी के कारण यह अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग' करने में सफल नहीं हो पाया था।