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डॉ प्रेम द्विवेदी (साइंटिस्ट , एडिलेट आस्ट्रेलिया) |
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डॉ. ऋतेश मिश्रा (दंतचिकित्सक लखनऊ) |
ब्यूरो चीफ - इंडेविन टाइम्स
लखनऊ ।
क्या है माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए?: ऊर्जा की मातृ विरासत
विज्ञान और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में, अक्सर आकर्षक अंतर्संबंध होते हैं, जहां भौतिक दुनिया और अलौकिक दुनिया सामंजस्य में मिलती है। ऐसा ही एक आकर्षक संगम माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए, हमारी कोशिकाओं के पावरहाउस, और नव दुर्गा की पूजा के माध्यम से सनातन धर्म में मनाई जाने वाली दिव्य स्त्री ऊर्जा के साथ इसके संबंध के अध्ययन में पाया जा सकता है। जबकि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए वंशानुक्रम के पीछे का विज्ञान जीव विज्ञान में निहित है, यह ऊर्जा के स्रोत के रूप में महिलाओं के प्रतीकवाद के बारे में प्रतिबिंब बनाता है।
भीतर का पावरहाउस: माइटोकॉन्ड्रिया
माइटोकॉन्ड्रिया हमारे शरीर की कोशिकाओं में पाए जाने वाले छोटे, दोहरी झिल्ली वाले अंग हैं। इन उल्लेखनीय संरचनाओं को अक्सर हमारी कोशिकाओं के "पावरहाउस" के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे शरीर के कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा के उत्पादन में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट (एटीपी) उत्पन्न करता है, एक अणु जो ऊर्जा को संग्रहीत और स्थानांतरित करता है। यह प्रक्रिया जीवन को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि हमारा शरीर अपने विभिन्न कार्य कर सके।
माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को विशेष रूप से आकर्षक बनाने वाली बात यह है कि यह विशेष रूप से मां से विरासत में मिला है। परमाणु डीएनए के विपरीत, जिसमें माता-पिता दोनों की आनुवंशिक सामग्री शामिल होती है, माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए केवल मातृ वंश के माध्यम से पारित होता है। विरासत की इस अनूठी विधा ने वैज्ञानिक जिज्ञासा और ईश्वर से जुड़ाव दोनों को जगाया है, क्योंकि यह कई आध्यात्मिक परंपराओं में स्त्री की केंद्रीय भूमिका को प्रतिबिंबित करता है।
नव दुर्गा: दिव्य स्त्रीत्व
सनातन धर्म में, नवरात्रि के त्योहार के दौरान नव दुर्गा या देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ये शक्तिशाली और पूजनीय देवता दिव्य स्त्री ऊर्जा के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। दुर्गा का प्रत्येक रूप शक्ति और साहस से लेकर पवित्रता और सर्वोच्चता तक विभिन्न गुणों का प्रतीक है।
माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए और नव दुर्गा के बीच संबंध महिलाओं की ऊर्जा के स्रोत की अवधारणा में निहित है, ठीक उसी तरह जैसे माइटोकॉन्ड्रिया सेलुलर ऊर्जा का स्रोत है। देवी-देवताओं को जीवन को बनाए रखने और पोषण करने में उनकी भूमिका के लिए मनाया जाता है, ठीक उसी तरह जैसे माइटोकॉन्ड्रिया हमारी कोशिकाओं को बनाए रखता है और उन्हें शक्ति प्रदान करता है। समानांतर को माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए वंशानुक्रम के विज्ञान का एक प्रतीकात्मक प्रतिबिंब माना जा सकता है, जो इस विचार को रेखांकित करता है कि महिलाएं वास्तव में हमारी दुनिया में महत्वपूर्ण ऊर्जा का स्रोत हैं।
रूपक और वास्तविकता
जबकि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए और दिव्य स्त्री के बीच संबंध की तुलना की जाती है, यह एक मनोरम परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है। सनातन धर्म में देवी-देवताओं का उत्सव हमें महिलाओं में निहित शक्ति, शक्ति और पोषण गुणों की याद दिलाता है। हमारी कोशिकाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा स्रोत, माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को संचारित करने में उनकी अनूठी भूमिका, जीवन के संरक्षक और निर्वाहक के रूप में नव दुर्गा के प्रतीकवाद को प्रतिबिंबित करती है।
विज्ञान और आध्यात्मिकता दोनों में, हम जीवन, ब्रह्मांड और हमारे अस्तित्व के अंतर्संबंध में सुंदरता पाते हैं। माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए और नव दुर्गा उन शक्तिशाली और विस्मयकारी शक्तियों की याद दिलाते हैं जो भौतिक क्षेत्र और आस्था और भक्ति दोनों के क्षेत्र में हमारी दुनिया को आकार देती हैं। यह जटिल ज्ञान का एक प्रमाण है, जहां विज्ञान और आध्यात्मिकता मिलते हैं, जो न केवल जीवन के वाहक बल्कि जीवन की ऊर्जा के संरक्षक के रूप में महिलाओं के गहन महत्व को मजबूत करता है।
सार यह है कि कहीं माइटोकॉनड्रियल डीएनए ही तो वजह नहीं है नवदुर्गा रूप, नारी उत्थान और नारी प्रगति?
शायद माइटोकॉनड्रियल डीएनए ही एक वजह है जिसकी वजह से आज सफल हो पा रहा है नारी सशक्तिकरण !
आज के समाज में नारी का अस्तित्व काफी प्रगतिवादी है । इस प्रगति के पीछे नवदुर्गा रूप के प्रत्येक रूपों का अनुकरण कर आज नारी ने माइटोकांड्रियल डीएनए के माध्यम से अपने प्रगतिवादी समाज की स्थापना कर डाली ।
दुर्गा या सशक्त नारी समाज या कहें कि आदर्श प्रगतिवादी समाज की आदर्श प्रगति के लिए मां के नौ रूप ही यह नौ नियम हैं ।
आज का प्रगतिवादी समाज इन नौ नियमों को नाइन स्किल्स भी कह सकता है ।
सनातन धर्म में आस्था रखने वाले व्यक्तियों ने नारी के नवदुर्गा रूप की परिकल्पना की जिसमें
पहली मां शैलपुत्री है ।
हिमालय में जन्म के कारण मां को शैलपुत्री कहा गया । मां शैलपुत्री की पूजा, धन, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए की जाती है। शैलपुत्री सिखाती है कि जीवन में सफलता के लिए सबसे पहले इरादों में चट्टान की तरह मजबूती और अडिगता होनी चाहिए।
दूसरी मां का रूप ब्रह्मचारिणी है ।
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है, जो ब्रह्मा के द्वारा बताए गए आचरण पर चले। जो ब्रह्म की प्राप्ति कराती हो। ब्रह्म का सीधा अर्थ सिर्फ सार्वभौमिक सत्य ही है ।जो हमेशा संयम और नियम से रहे।
तीसरी मां का रूप चंद्रघंटा माना गया है ।
जीवन में सफलता के साथ शांति का अनुभव तब तक नहीं हो सकता है, जब तक कि मन में संतुष्टि का भाव ना हो। आत्म कल्याण और शांति की तलाश जिसे हो, उसे मां चंद्रघंटा की आराधना करनी चाहिए व इस नियम को अपनी प्रगति में आत्मसात करना चाहिए ।
मां का चौथा रूप कूष्मांडा मां का माना गया है ।
ये देवी भय दूर करती हैं। भय यानी डर ही सफलता की राह में सबसे बड़ी मुश्किल होती है। जिसे जीवन में सभी तरह के भय से मुक्त होकर सुख से जीवन बिताना हो, उसे देवी कुष्मांडा के इस नियम को आत्मसात करना चाहिए।
पांचवां रूप स्कंद माता का है ।
ये शक्ति की दाता हैं। सफलता के लिए शक्ति का संचय और सृजन की क्षमता दोनों का होना जरूरी है। माता का ये रूप यही सिखाता है और प्रदान भी करता है।
मां कात्यायनी को छठा रूप माना गया है।
ये स्वास्थ्य की देवी हैं। रोग और कमजोर शरीर के साथ कभी सफलता हासिल नहीं की जा सकती। मंजिल पाने के लिए शरीर का निरोगी रहना जरूरी है। जिन्हें भी रोग, शोक, संताप से मुक्ति चाहिए उन्हें देवी कात्यायिनी के इस रूप नियम को मानना चाहिए।
मां का सातवां स्वरूप कालरात्रि माना गया है ।
ये रूप सिखाता है कि सफलता के लिए दिन-रात के भेद को भूला दीजिए। जो बिना रुके और थके, लगातार आगे बढ़ना चाहता है वो ही सफलता के शिखर पर पहुंच सकता है।
देवी का आठवां स्वरूप है महागौरी।
गौरी यानी पार्वती, महागौरी यानी पार्वती का सबसे उत्कृष्ट स्वरूप। अपने पाप कर्मों के काले आवरण से मुक्ति पाने और आत्मा को फिर से पवित्र और स्वच्छ बनाने के लिए महागौरी के इस नियम को पूजा जाता है।
मां का नवां रूप सिद्धदात्री हैं ।
ये देवी सारी सिद्धियों का मूल (Origin) हैं। देवी पुराण कहता है भगवान शिव ने देवी के इसी स्वरूप से कई सिद्धियां प्राप्त की। हर तरह की सफलता के लिए इन देवी की आराधना की जाती है। सिद्धि के अर्थ है कुशलता, कार्य में कुशलता और सलीका हो तो सफलता आसान हो जाती है।
डॉ प्रेम द्विवेदी साइंटिस्ट (एडिलेट आस्ट्रेलिया) और डॉ ऋतेश मिश्र (दंत चिकित्सक लखनऊ) के साझा विचार ।